झूठा ही सही पर तुम्हारा ही हूँ
लिखना है पर स्याही नहीं मिलती-
जाना है पर राहें नहीं मिलती...
बहारें भी जा लौट आती हैं-
लहरें भी देखो पलटती हैं...
तुम आ जाओ फिर से-
पत्थर पारस बना जाओ...
झूठा ही सही
पर इस जन्म क़ी बात नहीं है यह-
हर जन्म में तुम्हारा ही हूँ...
2.
तट की पाषाण पर-
पिटता हुआ लहर हूँ मैं...
तुम गयी तो लौट कर आती नहीं...
मैं बार बार- हर बार-
लौट ही आता हूँ...
कही तुम आई होगी-
भ्रमजाल में फस तड़पता-
छटपटाता
बार बार- हर बार-
लौट ही आता हूँ मैं ...
तृष्णा कहो -वितृष्णा कहो-
सच की आग में जलता हुआ तिनका कहो...
तट की पाषाण पर-
बस पिटता हुआ एक लहर ही हूँ मैं.
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1 comment:
lovely verses!!
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