इन गेसूयों में कोई एक सफ़ेद रंग भी है
जो आज भी मुझे बहुत पसंद है...
तुम कहती थी न याद है तुम्हे...?
इक दिन-
ये रंग लकीरें खींच जायेगा...
लकीरें खींची तो है...
मगर वो तकदीरों की हैं....
तुम आसमां बन गयी-
मैं धूल रह गया....
2.मैं खड़ा रह गया... मैं ठगा रह गया...
वो नज़र वहा से गुज़र गयी... मैं खड़ा रह गया - ठगा रह गया...
सोचा पुकारेगी मुझे कोई लहर...लेकिन सारी लहरें ही गुज़र गयी... मैं खड़ा रह गया... मैं ठगा रह गया...
एक बिजली सी गिरी.. मंज़र ही सारा राख हो गया.... मैं खड़ा रह गया... ठगा ही रह गया...
हर झूठ को सच मान- हर झूठ का इंतज़ार किया... लेकिन हर बार की तरह... मैं छला ही गया...
मैं खड़ा रहगया... मैं ठगा ही गया... बस ठगा ही गया....
3.उलझना न आप उलझनोँ में
ज़नाब उलझना न आप उलझनोँ में-न ही किसी लेखिका के अंदाज़े हुस्न में!
क़लम की धार उनकी-
कत्लेआम सरेआम कर जाते हैं.... #RashmiSingh https://www.facebook.com/Rashmii.S
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